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हम हकीकत को सपना समझते रहे ।

अफ़साना
अफ़साना
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गैरो को भी हम अपना समझते रहे ।
हर हकीकत को सपना समझते रहे ।
वो नजरों से वार हम पर करते रहे।
हम रुशवाई की आहट से डरते रहे ।
न जाने इस दिल को क्या हो गया ।
हँसते हँसते न जाने कहाँ खो गया।
वो वादे वो चाहत यू गुम होते गये ।
तेरी आहट से खयालो में खोते गये।
हर पल हम खयालो को बुनकर रहे ।
उम्र भर हम उनकी चर्चा सुनकर रहे ।
ऐ खुदा तू थोड़ा सा तो रहम कर दे ।
जीवन में खुशी की थोड़ी रम भर दे ।
बदकिस्मती का दरवाजा बंद कर दे।
मेरी किस्मत का सितारा बुलंद कर दे ।

……………………………..प्रदीप कुमार दीप

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