अफ़साना
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कितना विषैला नफ़रत का ये खंजर है।
हर ओर आँशू और खौफ का मंजर है ।
हालात इस शहर के हाँ बेशक नये है ।
परिन्दे भी देखो अब सहम से गये है ।
मुहब्बत की ज़मीन भी हो गई बंजर है ।
बेबश ये आँखे अब किस को बुलाएं।
दर्द अपने दिल का ये किस को सुनाएं।
हजारों भूखे और सिर्फ एक लंगर है ।
निशाना अपनों पर हाथों में संगीन है
मुहब्बत के खून से ये ज़मी रंगीन है।
दिलों में भरा आक्रोश का समंदर है।
कौन समझाये इस ईश्वर के अंश को।
ना झेल पाया कोई ईष्या के दंश को।
‘दीप’भयानक मारकाट का बबंडर है।
प्रदीप कुमार ‘दीप’
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