Menu
blogid : 13315 postid : 600871

हश्र -ए-आज़म क्या होगा ?

अफ़साना
अफ़साना
  • 15 Posts
  • 10 Comments

    समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक बैसे तो 2014 के लोकसभा चुनाव की रुपरेखा तय करने के लिए बुलाई गई थी ।मगर पार्टी के एक कद्दावर नेता की अनुपस्थिति ने अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया है, कि क्या आजम खान समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ना चाहते है ?फ़िलहाल यह जबाब सिर्फ आजम साहब के पास है ।बैसे आजम अक्सर अपना गुस्सा दिखाते रहते है मगर जिस तरह पिछले कुछ समय से उनका कैबनेट की मीटिगों से किनारा कर लेना और अब कार्यकारणी की बैठक में हिस्सा न लेना ।आज़म का यह व्यवहार निश्चित रूप से सपा के लिए मुश्किल पैदा करने वाला है ,खास तौर पर ऐसे समय में जब पार्टी  मुजफ्फरनगर दंगों से जूझ रही है ।         कार्यकारणी में उनकी अनुपस्थिति के सम्बन्ध में जब पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकार की ओर से मीडिया में जो बयान आया है,उससे किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि रामगोपाल यादव का यह बयान ,उस कारण रूपी ईट के सामान है जिस पर उनकी विदाई के लिए महल बनना है। उनके बयान के बाद जिस तरह पार्टी के अन्य बरिष्ठ  नेतओं ने बयान दिए उससे साफ होने लगा है कि अब सपा उनके नखरे नहीं सहने वाली ।फिर भले सपा मुखिया का बयान आज़म के लिए राहत देने वाला रहा हो मगर पहली नजर में ये साफ हो गया है कि पार्टी से उनके निष्कासन का काउन डाउन शुरू हो चुका है ।चाहे मुलायम सिंह और आज़म के सम्बन्ध कितने ही आत्मीय क्यों ना हो ?              मुझे याद है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी की हार हुई थी उस समय एक पत्रकार बन्धु ने आज़म से सवाल किया था कि “अब जब पार्टी की हार साफ हो चुकी है,तो आपकी पार्टी के नेता प्रतिपक्ष, क्या मुलायम सिंह होगे।”तो आजम ने बड़े ही सधे अंदाज में जबाब दिया था कि”देखिए मुलायम सिंह हमारे दल के नेता नहीं है मुलायम सिंह हमारे दिल के नेता है ।”शायद पहली नजर में आज़म खां की ये बात राजनीतिक लगे ,मगर ये शब्द ये बात बयाँ करने के किए काफी है कि मुस्लिम लोग मुलायम सिंह को किस तरह पसंद करते है ।            अब रही बात आज़म के जाने पर सपा के मुस्लिम चेहरे की तो उसके लिए सपा ने अहमद हसन और अबू आजमी को आगे करना शुरू कर दिया है ।सपा इसलिए भी वेफिक्र है क्योंकि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर 95प्रतिशत वोट भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए उपयोग करते है और जहां पर पार्टी भाजपा से सीधी लड़ाई में होगी ,वहां मुस्लिम उसे वोट देगे ।मुस्लिम यह बखूबी जानते है कि समाजवादी पार्टी कभी भी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं कर करेगी ।जहाँ तक आज़म की मुस्लिम मतों की पकड़ का सवाल है तो इसका उदाहरण  पिछले लोकसभा चुनाव में मिल चुका है जब आज़म के गृह जनपद की सीट से सपा प्रत्याशी जयप्रदा  खुद आज़म के कड़े विरोध के बाबजूद भारी मतों से जीती । आज़म भी कई दफा कह चुके है कि सपा और भाजपा एक ऐसे दरिया के दो किनारे है जो कभी एक नहीं हो सकते है ।   आज़म और अखिलेश के सम्बन्ध भी अधिक अच्छे नहीं नही रहे है ।चाहे वह डी पी यादव का मुद्दा हो या मेरठ प्रभार का मुद्दा हो ,आज़म की प्रतिष्ठा को झटका तो लगा ही है ।सपा मुस्लिमो में यह सन्देश नहीं देना चाहती कि जो कुछ वह कर रही है वो आज़म की देन है ।यही संदेश देने के लिए अखिलेश यादव ने मुस्लिम आरक्षण की घोषणा आज़म की बगैर मौजूदगी में की ।पार्टी के बाकी मुस्लिम नेता भी नहीं चाहते कि आज़म को ज्यादा अहमियत मिले।                इस बात से सभी वाकिफ़ है ख़ासकर आज़म खां भी कि मुलायम सिंह  जैसा राजनीतिक लड़ाका जो अपने एक ही दाव से अच्छे से अच्छे धुरंधरों को परास्त कर देता है उससे बैर लेकर राजनीति में कितने सफल हो सकेगें। उनके सामने अमर सिंह का उदाहरण है जो आज राजनीति के रसातल में पहुँच चुके है ।बेनीप्रसाद जैसे नेता जो समाजवादी पार्टी छोड़ कर गए वो भी अपने बेटे को विधायक नहीं बनवा सके और तो और खुद की भी सीट खटाई में पड़ गई है ।इस बात में कोई सक नहीं कि आज़म इस समय कठिन अंतर्द्वद से जूझ रहे होगे और इसका जवाब आने वाला कल ही देगा ।                 लेखक -प्रदीप कुमार दीप         

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply